कष्टों से मुक्ति मिल जाये
ऐसा कुछ प्रयास करो,
सावधान रहकर कांटों से
फूल फूल चुन लिया करो;
तो भी कंटक चुभ ही जायें
तो भी क्या परेशानी है,
उसका तो स्वभाव चुभन है
तो भी क्या बेमानी है;
कंटक भी कोमल हो जायें,
कोमलता को पूछे कौन
सब कुछ कोमल-कोमल होगा,
ज्ञान चुभन का देगा कौन ?
जिसको जितना ज्ञान चुभन का
उतना कोमल खुद बन जाता,
खुद कितने भी कंटक झेले,
औरों का दीपक बन जाता;
अपने हाथ-पैर छलनी कर
जो औरों को मार्ग बताता,
जीवन की सार्थकता मिलती
जग के मग में फूल बिछाता ।
-सरोज दहिया
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteसादर..
सुन्दर रचना
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर सरोज जी. एक पुराना नग्मा याद आ गया -
ReplyDeleteअपने लिए जिए तो क्या जिए,
तू जी ऐ दिल ! ज़माने के लिए.
सुन्दर रचना
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावों की सार्थक रचना।
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