Friday, October 26, 2018

उनके चेहरे से जो मुस्कान चली जाती है



उनके चेहरे से जो मुस्कान चली जाती है,
मेरी दौलत मेरी पहचान चली जाती है।


जिंदगी रोज गुजरती है यहाँ बे मक़सद,
कितने लम्हों से वो अंजान चली जाती है।



तीर नज़रों के मेरे दिल में उतर जाते हैं,
चैन मिलता ही नहीं जान चली जाती है।



याद उनकी जो भुलाने को गए मैखाने,
वो तो जाती ही नहीं शान चली जाती है।



एक रक़्क़ासा घड़ी भर में तेरी महफ़िल से,
तोड़कर कितनो के ईमान चली जाती है।



खोए रह जाते हैं हम उसके तख़य्युल में 'मिलन',
और वो 'नरगिस-ए-रिज़वान' चली जाती है। 

मिलन 'साहिब'



मायने
बेमक़सद = लक्ष्यहीन, मैखाना = शराब घर, रक़्क़ासा = नाचने वाली, तख़य्युल = याद, नरगिस-ए-रिज़वान = स्वर्ग सुंदरी

4 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (27-10-2018) को "पावन करवाचौथ" (चर्चा अंक-3137) (चर्चा अंक-3123) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत ही सुन्दर रचना

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