Thursday, August 30, 2018

सूखे पत्ते......नवल किशोर कुमार

सूखे पत्ते,
टूट रहे हों जैसे,
हम भी तो हो रहे हैं दूर
अपनी मिट्टी से
अपने जड़ों से
एक अनजानी
कभी पूरी न होने वाली
इच्छाओं के पीछे
बिना यह सोचे
कि हमारा भविष्य क्या होगा
हमारा अस्तित्व क्या होगा
चले जा रहें हैं बस
बिन मंज़िल का मुसाफ़िर बन
एक ऐसे रास्ते पर
जो कहीं खत्म नहीं होता
कभी सोचता हूँ 
क्या यही सपना है
जो देखा था कभी
मेरे और तुम्हारे
पूर्वजों ने हमारे लिए
हमारे बेहतर कल के लिए !

-नवल किशोर कुमार

8 comments:

  1. बेहतरीन रचना।
    भाव पक्ष सबल।

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  2. बहुत सुन्दर 👌👌👌

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  3. अति सुन्दर भावाभिव्यक्ति

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (31-08-2018) को "अंग्रेजी के निवाले" (चर्चा अंक-3080) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
    ---

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  5. सुंदर प्रस्तूति।

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  6. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन गाँव से शहर को फैलते नक्सली - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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