शब ए फ़ुर्सत में तू आना, ऐ ख़्वाब,
दिन में तेरा नहीं काम, ज़माना नहीं।
हो ना जाएँ कहीं रंग ये, तेरे खराब,
रात के सिवा, तेरा कोई, ठिकाना नहीं।
तेरा फन, तेरा हुनर, लाजवाब,
पर किसी को, ये अज़ाब, बताना नहीं।
कोई खेलेगा तुझसे, कोई झेलेगा तुझको,
कर तू बात, यहाँ दिल, लगाना नहीं।
कहूँ दिल से एक हिदायत है जनाब,
जागते रहना किसी को जगाना नहीं।
कोई वीणा या बजाओ कोई रबाब,
अब अकेले खुद से यूँ शर्माना नहीं।
-राहुल राही
प्राप्ति स्त्रोत
प्राप्ति स्त्रोत
शब ए फ़ुर्सत में तू आना, ऐ ख़्वाब,
ReplyDeleteदिन में तेरा नहीं काम, ज़माना नहीं।
वाह वाह बेहतरीन गजल।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (03-08-2018) को "मत घोलो विषघोल" (चर्चा अंक-3052) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह बेहतरीन गजल
ReplyDeleteWah!!!
ReplyDelete