बोला था -
घर घर जाओ,
जाकर हाल पूछते आओ .
दो दिन में, दस गाँवों का
तुम सर्वे करके लाए हो ,
सच सच बोलो, क्या फिर से
सिर्फ़ सरपंच से मिलके आए हो?
कितने भूखे हैं,
कितने लाचार .
वो शख्स समझ कहाँ पाया है ?
जो जातिवाद के चश्मे से इंसान नापता आया है.
बोला था-
हर चूल्हे के हर हाल को.
बेरोज़गारी के हर जाल को,
क़ैद कर लो, इन फार्मों में.
इनसे ,भारत निर्माण की
तस्वीरें बनेगी ,
देश बनेगा ,
तक़दीरें बनेंगी
सच बोलो ! ये आँकड़े -
क्या खुद से भरकर आए हो?
सच सच बोलो ,क्या फिर से-
सिर्फ़ सरपंच से मिलकर आए हो?
-कमलकिशोर पाण्डेय
मूल रचना
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (18-06-2018) को "पूज्य पिता जी आपका, वन्दन शत्-शत् बार" (चर्चा अंक-3004) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
ढोल मे है पोल कितनी बजा बजा बस देखिये..
ReplyDeleteसार्थक सुंदर ।