धूप सिपाही बन गई , सूरज थानेदार !
गरम हवाएं बन गईं , जुल्मी साहूकार !!
:
शीतलता शरमा रही , कर घूँघट की ओट !
मुरझाई सी छांव है , पड़ रही लू की चोट !!
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चढ़ी दुपहरी हो गया , कर्फ़्यू जैसा हाल !
घर भीतर सब बंद हैं , सूनी है चौपाल !!
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लगता है जैसे हुए , सूरज जी नाराज़ !
आग बबूला हो रहे , गिरा रहे हैं गाज !!
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तापमान यूँ बढ़ रहा , ज्यों जंगल की आग !
सूर्यदेव गाने लगे , फिर से दीपक राग !!
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कूलर हीटर सा लगे , पंखा उगले आग !
कोयलिया कू-कू करे , उत अमवा के बाग़ !!
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लिए बीजना हाथ में , दादी करे बयार !
कूलर और पंखा हुए , बिन बिजली बेकार !!
:
कूए ग़ायब हो गये , सूखे पोखर - ताल !
पशु - पक्षी और आदमी , सभी हुए बेहाल !!
:
धरती व्याकुल हो रही , बढ़ती जाती प्यास !
दूर अभी आषाढ़ है , रहने लगी उदास !!
:
सूरज भी औकात में , आयेगा उस रोज !
बरखा रानी आयगी , धरती पर जिस रोज !!
:
पेड़ लगाओ पानी बचाओ , कहता सब संसार !
ये देख चेते नहीं ,तो इक दिन होगा बंटाधार !!!!
-नामालूम
खरा खरा फलसफा गर्मी की दादागिरी और पर्यावरण पर बहुत सटीक रचना ।
ReplyDeleteमालूम कीजिये नामालूम को पता तो चले पता। सुन्दर ।
ReplyDeleteखरी खरी सी बात
ReplyDeleteसुना रहे कवि राज
जाग सको तो जाग जाओ
वर्ना बंटाधार !
👌👌👌 lajwab
ReplyDeleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 17 मई 2018 को प्रकाशनार्थ 1035 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17.05.18 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2973 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन गुलशेर ख़ाँ शानी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteवृक्षों के न होने सो गर्मी को खुली छूट मिल जाती है न !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....
ReplyDeleteवाह!!!
बहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteसुन्दर बात सुन्दर ढंग|
ReplyDeleteBahut sundar.
ReplyDeleteYou may also like Free Movie Streaming Sites , Comments on girls pic