कांच के जज्बात, हिम्मत कांच की
यार ये कैसी है इज्जत कांच की ?
पालते हैं खोखले आदर्श हम-
माँगते हैं लोग मन्नत कांच की
पत्थरों के शहर में महफूज़ है-
देखिये अपनी भी किस्मत कांच की
चुभ गया आँखों में मंजर कांच का-
दब गयी पाने की हसरत कांच की
सोचिये अगली सदी को देंगे क्या
रंगीनियाँ या कोई जन्नत कांच की ?
- रवीन्द्र प्रभात
वाह विचारणीय प्रश्न लिये उम्दा रचना।
ReplyDeleteवाह विचारनिय बात कह दी कांच की ....👌👌👌👌👌👌चिंतन मनन सी रचना
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (28-05-2018) को "मोह सभी का भंग" (चर्चा अंक-2984) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी