आजकल डर के कारण
सांसे कुछ कम ले रही हूं
अगली पीढ़ी के लिये
कुछ प्राण वायु छोड़ जाऊं,
डरती हूं क्या रहेगा
उनके हिस्से
बिमार वातावरण
पानी की कमी
दूषित खाद्य पदार्थ
डरा भविष्य
चिंतित वर्तमान
जीने की जद्दोजहद
झूठ, फरेब
बेरौनक जिंदगी
स्वार्थ
अविश्वास
धोखा फरेब
अनिश्चित जीवन
वैर वैमनस्य
फिर से दिखता
आदम युग
यह भयावह
चिंतन मुझे डराता है
सोचती हूं अभीसे
पानी की
एक एक बूंद का
हिसाब रखूं
कुछ तो सहेजू
उनके लिये
कुछ अच्छे संस्कार
दया कोमल भाव
सहिष्णुता
मजबूत नींव
धैर्य आदर्श
कि वो अपने
पूर्वजों को कुछ
आदर से याद करें
चैन से जी सके
और अपनी अगली पीढ़ी को
कुछ अच्छा देने की सोचें....
-कुसुम कोठारी
सुन्दर
ReplyDeleteसादर आभार।
Deleteवाह!!! बहुत खूब
ReplyDeleteआभार सखी ।
Deleteवाह बेहद सुंदर सटीक
ReplyDeleteआभार प्रिय बहना ।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (13-04-2017) को बैशाखी- "नाच रहा इंसान" (चर्चा अंक-2939) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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बैशाखी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय सादर आभार। मेरी रचना को चुनने के लिये।
Deleteउम्दा सजा चर्चा मंच लिंक्स से |
ReplyDeleteसुंदर, चिंतनीय !
ReplyDeleteवाह मीता लाजवाब सोच और अभीव्यक्तीकरण
ReplyDeleteचिंतित मन का चिंतन aprtim.
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन स्वार्थमय सोच : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सार्थक प्रस्तुति...
ReplyDeleteआने वाले कल की चिन्ता में आज के अन्धानुकरण के कारण डर भी लाजिमी है...
लाजवाब....
वाह!!!
बहुत सुंदर भावाव्यक्ति दी।
ReplyDeleteबेहद सार्थक..सारगर्भित अभिव्यक्ति दी👌
वाह!!बहुत खूब !
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