हवाओं में ऐसी ख़ुशबू पहले कभी न थी
ये चाल बहकी बहकी पहले कभी न थी
ज़ुल्फ़ ने खुलके उसका चेहरा छुपा लिया
घटा आसमा पे ऐसी पहले कभी न थी
आँखें तरस रहीं हैं दीदार को उनके
दिल में तो ऐसी बेबसी पहले कभी न थी
फूलों पे रख दिए हैं शबनम ने कैसे मोती
फूलों पे ऐसी रौनक पहले कभी न थी
यादों की दस्तकों ने दरे दिल को खटखटाया
आती थी याद पहले पर ऐसी कभी न थी
-कुसुम सिन्हा
सुंदर मोहक रचना
ReplyDeleteआँखें तरस रहीं हैं दीदार को उनके
दिल में तो ऐसी बेबसी पहले कभी न थी
सुन्दर
ReplyDeleteउम्दा गजल ।
ReplyDeleteकुसुम जी को बधाई।
शुभ दिवस।
उम्दा गजल
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (05-12-2017) को दरमाह दे दरबान को जितनी रकम होटल बड़ा; चर्चामंच 2808 पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
👌👌👌👌👌बेहद बेहतरीन ग़ज़ल कुसुम जी
ReplyDeleteपहले ऐसे कभी ना थी .....उम्दा अंदाज ..
लाजवाब गजल.....
ReplyDeleteवाह!!!!