Monday, December 18, 2017

अक्स तुम्हारा.....डॉ. सरस्वती माथुर

1
मोर है बोले
मेघ के पट जब
गगन खोले l
2
वक्त तकली
देर तक कातती
मन की सुई l
3
यादों के हार
कौन टाँक के गया
मन के द्वार l
4
अक्स तुम्हारा
याद आ गया जब
मन क्यों रोया ?
5
यादों से अब
मेरा बंधक मन
रिहाई माँगे l
6
यादों की बाती
मन की चौखट को
रोशनी देती l 
7
साँझ होते ही
आकाश से उतरी
धूप चिरैया l
8
धरा अँगना
चंचल बालक सी
चलती धूप l
9
भोर की धूप
जल दर्पण देख
सजाती रूप l
10
मेघ की बूँदें
धरा से मिल कर
मयूरी हुई

-डॉ. सरस्वती माथुर

5 comments:

  1. बहुत ही शानदार

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (19-12-2017) को "ढकी ढोल की पोल" (चर्चा अंक-2822) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. वाह बहुत सुन्दर हाइकु।
    शुभ संध्या।

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