Thursday, December 14, 2017

मौत भी मैं शायराना चाहता हूँ ................कातिल सैफ़ी

अपने होंठों पर सजाना चाहता हूँ
आ तुझे मैं गुनगुनाना चाहता हूँ

कोई आँसू तेरे दामन पर गिराकर
बूँद को मोती बनाना चाहता हूँ

थक गया मैं करते-करते याद तुझको
अब तुझे मैं याद आना चाहता हूँ

छा रहा है सारी बस्ती में अँधेरा
रोशनी हो, घर जलाना चाहता हूँ 


आख़री हिचकी तेरे ज़ानों पे आये
मौत भी मैं शायराना चाहता हूँ 
 

-कातिल सैफ़ी

3 comments:

  1. वाह क्या बात है
    बहुत सुंदर रचना
    मन को छू गई

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (15-12-2017) को
    "रंग जिंदगी के" (चर्चा अंक-2818)

    पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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