तपो,
अपनी आँच में तपो कुछ देर,
होंठों की अँजुरी से
जीवन रस चखो-
बैठो...
कुछ देर अपने सँग
अपनी आँच से घिरे,
अपनी प्यास से पिरे,
अपनी आस से घिरे,
बैठो...
ताकि तुम्हे कल यह न लगे
साँस भर तुम यहाँ जी न सके।।
अपनी आँच में तपो कुछ देर,
होंठों की अँजुरी से
जीवन रस चखो-
बैठो...
कुछ देर अपने सँग
अपनी आँच से घिरे,
अपनी प्यास से पिरे,
अपनी आस से घिरे,
बैठो...
ताकि तुम्हे कल यह न लगे
साँस भर तुम यहाँ जी न सके।।
-डॉ. शैलजा सक्सेना
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteBahut acchi rachna....lajwab
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeletebahut sundar rachna
ReplyDelete