ज़िन्दगी उम्मीद पर कब तक रहेगी,
काग़ज़ की कश्ती है कब तक बहेगी। क्यूँ, किसने, क्या कहा, फ़िक्र न करें, दुनिया तो कहती है, कहती रहेगी। जलती है वो भी इश्क़ में उसके, शमा परवाने को, ये कैसे कहेगी। ख़िज़ां गर है आई, फ़िज़ा होगी पीछे, दोनों की दौड़ ये, बदस्तूर रहेगी। तसव्वुर में जैसी परवाज़ होगी, बुलंदी आसमां की भी वैसी रहेगी।
- गुलाब जैन
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सुन्दर
ReplyDeletevery nice....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...।
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