इस पूरे प्रकरण में
वे दोनों साक्षी थे
पर हर बार तुम
जलील होती रही
और वो
तमाम बेगुनाही का सबूत देकर
बच निकलता था
हर बार वो तय मुताबिक
उसके अस्तित्व को तार-तार कर देता था
वो मूक स्तब्ध होकर
देख रही थी उन आँखों को
जिसने उसे एक नज़र दी थी
दुनिया को देखने की
पर ये क्या
उसके हौसले पस्त हो रहे थे
उसी पुरुष के सामने
जिसने कभी कहा था
तुम मेरी मुमताज़ हो
बनाउंगा एक ताज़महल वैसे ही
जैसे कभी शाहजहां ने बनाया था
खूबसूरत मुमताज के लिये
-पल्लवी मुखर्जी
सुन्दर।
ReplyDeleteअति सुंदर
ReplyDeletevery nice
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
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