चरित्र और मर्यादा!
जिसने भी गढ़े होंगे ये शब्द,
बड़ा व्यापक हेतु रहा होगा।
शायद आचार का निर्धारण
और निष्ठा का पालन कहा होगा।
प्रतिपादित किये गये होंगे
सम्भवतः ‘सर्व गुण संपन्न’
मदांध-नियंताओं और
सामंतो के लिये।
किन्तु थोप दिये गये,
पुरुषों के पैरोकारों द्वारा,
कुशलतापूर्वक स्त्रियों पर।
समर्थन मिलना ही था, मिला
और समय के साथ बन गया
यह एक अपरिहार्य संस्कार,
नाम दे दिया गया संस्कृति का
परिप्रेक्ष्य विलुप्त है, क्यों भला ?
प्रश्न तो है, पर अनुत्तरित,
सदा की तरह।
विषय संवेदनशील है
और इतिहास भी,
सिहरन उठती है
यदि पलट लें कभी
पन्ने उन किताबों के
जिनमें भरे पड़े हैं
किस्से अतिवाद के
उत्पीड़न के, विलासता के।
सन्धि का उपहार स्त्री
जुये में दाव स्त्री
सत्ता का विस्तार स्त्री
युद्ध का संहार स्त्री
संभवतः
बहुमूल्य वस्तु की भांति
प्रबंधन किया जाता होगा
स्त्रियों का।
जैसे अन्य भौतिक मूल्यवान
वस्तुओं का किया जाता था
स्वयं का मूल्य बढ़ाने हेतु
जिससे अहम की तुष्टि तो हो ही,
समर्थता की भी पुष्टि हो
वस्तुतः सामर्थ्य ही तो सबलता
को सत्यापित करता था
शायद शासन करना,
नियंता बनना
यही अंतिम शगल है
पुरुष जाति का, क्यों भला ?
प्रश्न तो है, पर अनुत्तरित,
सदा की तरह।
-अमित जैन 'मौलिक'
वाह।
ReplyDeleteआपका अतुल्य आभार आदरणीया। शुभ प्रभात। सादर
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (04-010-2017) को
ReplyDelete"शुभकामनाओं के लिये आभार" (चर्चा अंक 2747)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'