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तेरा नाम
बारिशों के मौसम में
छत पे' बैठ के तन्हा
नन्ही नन्ही बूंदों से
तेरा नाम लिखती हूँ
काश
मेरे मालिक
बहुत रहमो-करम
मुझ पर किये तूने
मैं तेरा शुक्र अदा करते नहीं थकती
मगर, बस एक छोटी सी शिकायत है
कि मेरी ज़िन्दगी में
इतने सारे 'काश'
क्यों रक्खे
सवाल
मुहब्बत आशना लम्हे (प्रेम पूर्ण क्षण )
छिपाये इक अजब सा कर्ब (वेदना )
लहज़े में मुझी से पूछते हैं
ये अगर हर ख़्वाब की किस्मत में
मर जाना ही लिखा है
तो आँखें देखती क्यों हैं
-हुमैरा राहत
वाह।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (11-10-2017) को
ReplyDeleteहोय अटल अहिवात, कहे ध्रुव-तारा अभिमुख; चर्चामंच 2754
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अच्छी.नज्म है
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