वो दिखा रही थी
"सोलापुर शादी व्हाट्सएप ग्रुप " में,
लड़कों के प्रोफाइल ।
भाभी!
इससे कुछ ही दिन पहले बात ख़त्म हुई
गोरा है ना ये ?
कार खरीदेगा शादी के बाद बोलता था
दुबई गया
एक ये है
अपने माँ -बाप से छुपाया इसने सब
मैं थोड़ा काली हूँ और घर-घर काम करती हूँ
इसके घर वाले नहीं माने
और एक ये
मुझसे कहता....
पहले रात को हस्बैंड-वाइफ वाली बातें करूं
फिर शादी का सोचेगा
मैंने ही ना कह दी
और इक ये
बस चैट करता था
फोन हमेशा उसके पिता करते
माँ बोली लड़के से बात करवा दो
वो बोले , शादी के बाद ....
अब उसने चैट बंद कर दी
मुझसे क्या गलती हुई ?
मैं उससे प्यार करने लगी थी
मैं बहुत रोई दस-पंद्रह दिन
रंजो की शादी हुई ..
उसने मुझसे बात करनी छोड़ दी
श्यामा का बेटा हुआ
उसकी मां ने उससे मिलने नहीं दिया
एक बच्चे को गोद में खिला रही थी
लोग समझे मेरा बेटा है !
ओह !! अब मैं बच्चे की मां जैसी दिखने लगी ?
मैं मोटी हो गई , पेट निकल आया ...
क्या मेरा चेहरा औरत सा लगने लगा ?
भाभी! उस दिन फिर मैं बहुत रोई
...तुझे किसी से तो प्यार होगा उससे ही शादी करना
प्यार करके शादी करने में ये सब प्रपंच नहीं होते ।
दूधमुँही थी कि माँ काम पर साथ ले जाती , पिता गुजर गए थे
दस बारह साल में काम शुरू कर दिया – झाडू,पोछा,बर्तन
कितने ही मर्द थे !
कितनी ही आँखें!
जो नापती हर दिन बढती देह को
क्या करती एक तेरह – चौदह साल की लडकी
जब बर्तन मांज रही होती और
मालिक निर्वस्त्र पीछे खड़ा हो जाता
मैं घबराई नहीं थी
हाथ – पाँव सुन्न नहीं हुए
मैं धक्का दे कर भागती रही
रौंदती कितनी ही नंग-धडंग देहों को
छब्बीस की पूरी हो गयी
मुझे हुआ जब भी प्यार
उसमें शादी कहाँ होती है ?
मुझे प्यार नहीं करना
अब मुझे शादी करनी है
मुझे घर पर रहना है
पर अब डर लगता है
क्या मेरी शादी कभी नहीं होगी ?
उसकी बातों के बाद इक उलझन सी रहती है
" प्रेम क्या भरे पेट की लग्ज़री " ?
-जया यशदीप घिल्डियाल
"सोलापुर शादी व्हाट्सएप ग्रुप " में,
लड़कों के प्रोफाइल ।
भाभी!
इससे कुछ ही दिन पहले बात ख़त्म हुई
गोरा है ना ये ?
कार खरीदेगा शादी के बाद बोलता था
दुबई गया
एक ये है
अपने माँ -बाप से छुपाया इसने सब
मैं थोड़ा काली हूँ और घर-घर काम करती हूँ
इसके घर वाले नहीं माने
और एक ये
मुझसे कहता....
पहले रात को हस्बैंड-वाइफ वाली बातें करूं
फिर शादी का सोचेगा
मैंने ही ना कह दी
और इक ये
बस चैट करता था
फोन हमेशा उसके पिता करते
माँ बोली लड़के से बात करवा दो
वो बोले , शादी के बाद ....
अब उसने चैट बंद कर दी
मुझसे क्या गलती हुई ?
मैं उससे प्यार करने लगी थी
मैं बहुत रोई दस-पंद्रह दिन
रंजो की शादी हुई ..
उसने मुझसे बात करनी छोड़ दी
श्यामा का बेटा हुआ
उसकी मां ने उससे मिलने नहीं दिया
एक बच्चे को गोद में खिला रही थी
लोग समझे मेरा बेटा है !
ओह !! अब मैं बच्चे की मां जैसी दिखने लगी ?
मैं मोटी हो गई , पेट निकल आया ...
क्या मेरा चेहरा औरत सा लगने लगा ?
भाभी! उस दिन फिर मैं बहुत रोई
...तुझे किसी से तो प्यार होगा उससे ही शादी करना
प्यार करके शादी करने में ये सब प्रपंच नहीं होते ।
दूधमुँही थी कि माँ काम पर साथ ले जाती , पिता गुजर गए थे
दस बारह साल में काम शुरू कर दिया – झाडू,पोछा,बर्तन
कितने ही मर्द थे !
कितनी ही आँखें!
जो नापती हर दिन बढती देह को
क्या करती एक तेरह – चौदह साल की लडकी
जब बर्तन मांज रही होती और
मालिक निर्वस्त्र पीछे खड़ा हो जाता
मैं घबराई नहीं थी
हाथ – पाँव सुन्न नहीं हुए
मैं धक्का दे कर भागती रही
रौंदती कितनी ही नंग-धडंग देहों को
छब्बीस की पूरी हो गयी
मुझे हुआ जब भी प्यार
उसमें शादी कहाँ होती है ?
मुझे प्यार नहीं करना
अब मुझे शादी करनी है
मुझे घर पर रहना है
पर अब डर लगता है
क्या मेरी शादी कभी नहीं होगी ?
उसकी बातों के बाद इक उलझन सी रहती है
" प्रेम क्या भरे पेट की लग्ज़री " ?
वाह।
ReplyDeleteप्रेम क्या भरे पेट की लग्जरी...
ReplyDeleteवाह !!!
शादी इन सब समस्याओं का समाधान तो नहीं...
बहुत ही सुन्दरता से व्यक्त किया है आपने थके हारे दिल
की आवाज को...भ्रम को....
लाजवाब प्रस्तुति।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (02-09-2017) को "सिर्फ खरीदार मिले" (चर्चा अंक 2715) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
वाह्ह...मन छूती रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ..
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteमन को छूती बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना।
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी !!!
ReplyDeleteसुन्दर!
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी यथार्थपरक चिंतन को प्रस्तुत करती भावप्रवण रचना ।
नई कविता के बदलते स्वरुप की झलक शानदार है।
बधाई एवं शुभकामनाऐं।