श्वेता बहन ने
दर्द को मेरे
किया महसूस
हलका किया
मेरी पीड़ा को
तन-मन के दाह को
पोछा मेरे बह रहे
अश्रु को...
हृदय से आभारी हूँ..
सादर...
प्रस्तुत है
दर्द बेहिसाब मिले ऐ ज़िदगी तुझसे
जीने का हौसला न तोड़ पाये
जितनी बार दुखा तन मन,
मेरा असहनीय पीड़ाओ से,
व्यथित हृदय के बोझ से
डबडबाये नयन,
पीर की बदरी भरी
बहे कराहकर आँसू जब भी
अश्कों को व्यर्थ न बहने दिया
बंजर सूखे माटी पर बोये
असह्य वेदना में झुलसते
मुरझाये बीजों को सींचकर
नव अंकुरण की प्रतीक्षा की
कटे जीवन वृक्ष के शाखों पर
नव पल्लव की आस लिये
तपते धूप को हँसकर स्वीकार किया
साँझ की फीकी रोशनी
जब आँखों में समायी
न खो कर अंधेरों में
जलाकर सारी नकारात्मकता
एक दीप आशाओं का
प्रज्जवलित कर सुख के भोर का
पल पल इंतज़ार किया
मौन पल पल शब्दहीन होकर
अव्यक्त भावों को समेटकर
भरकर लेखनी में
खाली पन्नों को सतरंग किया
ऐ ज़िदगी, तू हार गयी दर्द देकर मुझे
और मैं दर्द सहकर तुझसे जीत गयी
-श्वेता सिन्हा
वाह!!!
ReplyDeleteलाजवाब.....
एक दीप आशाओं का
प्रज्जवलित कर सुख के भोर का
पल पल इंतज़ार किया
बहुत ही सुन्दर...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (12-07-2017) को "विश्व जनसंख्या दिवस..करोगे मुझसे दोस्ती ?" (चर्चा अंक-2664) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
नमन आप जैसे दोनों व्यक्तित्वों को। आदरणीय यशोदा बहन जी ने जीवट से परिपूर्ण जीवन संघर्ष और हालातों की विसंगतियों को पछाड़ते हुए जो मुक़ाम हासिल किये हैं वे सदैव स्मरणीय ,अनुकरणीय रहेंगे।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई श्वेता जी एक प्रेरक व्यक्तित्व को प्रभावी शब्दों में हमारे समक्ष प्रस्तुत करने के लिए।
बहुत ही बढ़िया रचना
ReplyDeleteयशोदा दीदी !
ReplyDeleteदर्द भी कुछ रिश्ते जोड़ देता है।
जानी अनजानी रगों में बहता,
जिंदगी को अजीब से मोड़ देता है !
दर्द भी कुछ रिश्ते जोड़ देता है !
श्वेताजी,सही है ना ? आसान नहीं है
ऐसे लिखना, बधाई आपको ...
hosla isi tarah buland rahe, sahi sarthak likha hai , is dard se jaise mai roobaroo hui hoon ho rahi hoon jahan jindagi se jiitne ki jang jaari hai , aapko badhai
ReplyDeleteमौन पल पल शब्दहीन होकर
अव्यक्त भावों को समेटकर
भरकर लेखनी में
खाली पन्नों को सतरंग किया
ऐ ज़िदगी, तू हार गयी दर्द देकर मुझे
और मैं दर्द सहकर तुझसे जीत गयी.......bahut khoob
सुन्दर।
ReplyDeleteनमस्ते ,आपकी यह रचना "पाँच लिंकों का आनंद "http://halchalwith5links.blogspot.in के 727 वें अंक (गुरूवार 13 -07 -2017 ) में प्रकाशन हेतु लिंक की गयी है । विमर्श में शामिल होने के लिए अवश्य आइयेगा,आप सादर आमंत्रित हैं। सधन्यवाद।
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना..
ReplyDeleteसंवेदनशील रचना..
ReplyDeleteभावुक करती श्रेष्ठ रचना.
ReplyDelete