दंगो में चमचे ,
चिमटे भी हथियार हो गये
भीड़ जहाँ देखी..
.... उसके तरफदार हो गये !
शोहरतमंदों का ग्राफ.....
नीचे गिरा
तो कब्र बन गये
और उँचा हुआ तो..
गर्दने ऐंठ गयी
कुतुब मीनार हो गये !
अजब रोग है ...
इन खूब अमीर
मगर गुनाहगार लोगों का
मुक़दमे की........
हर तारीख पे ........
बीमार हो गये !
सियासत गंभीर मुद्दा
..... या अँग्रेज़ी वाला “फन “
क़व्वाली-ए-चुनाव में........
बेसुरे भी
फनकार हो गये !
बचपन में........
माँ जब स्कूल भेजती थी
बालों में तेल चुपड़ कर..
कंघी की... और ह्म तैयार हो गये !
-गौतम कुमार “सागर”
और हां हम तैयार हो गए
ReplyDeleteबहुत खुब
सुप्रभात
www.virendrabharti.blogspot.com
बहुत सुन्दर ,सार्थक प्रस्तुति....
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (23-05-2017) को
ReplyDeleteमैया तो पाला करे, रविकर श्रवण कुमार; चर्चामंच 2635
पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर।
ReplyDeleteवाह ... जबरदस्त व्यंग ... गहरी रचना ... समाज पे तमाचा ...
ReplyDeleteवाहः खूब
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