बहुत समय पहले की बात है, लेखनपुर नामक गाँव में एक युवक और युवती रहा करते थे । युवती का नाम कविता और युवक का नाम कहानी था । कविता और कहानी के प्रेम के चर्चे सिर्फ लेखनपुर मे ही नहीं बल्कि आस पास के गाँव में हुआ करते थे । लोग इनकी तुलना लैला-मजनू और शीरी-फरहाद से किया करते थे । बड़े बुजुर्ग तो यहाँ तक कहा करते थे कि कविता और कहानी से ही लेखनपुर आबाद है, कोई कहता कविता और कहानी के रहने से ही लेखनपुर की पहचान बनी है। कविता और कहानी की मौजूदगी से लेखनपुर भी आनंदित था ।
अचानक एक दिन लेखनपुर में एक अजनबी आदमी आया। उसकी बुरी नज़र कविता और कहानी की जोड़ी पर पड़ी और उसी दिन से कविता और कहानी के बुरे दिन शुरू हो गये। वह अजनबी आदमी धीरे-धीरे संदिग्ध होने लगा, उसने कविता और कहानी को सब्ज़-बाग दिखाने शुरू कर दिये, उसने इनके दिमाग में यह बात बैठा दी कि यहाँ लेखनपुर मे तुम्हारी कोई पहचान नहीं बन पा रही है तुम मेरे साथ चलो फिर देखो मैं तुम्हें कहाँ से कहाँ पहुँचा देता हूँ । कविता और कहानी उस धोखेबाज के चक्कर में आ गये और अपने आप को पूरी तरह से उसके हवाले कर दिया। उस दिन के बाद से आज तक लेखनपुर में कविता और कहानी को नहीं देखा गया। किसी को पता ही नहीं चला कि आखिर ये दोनों का क्या हुआ? बहुत समय बाद केवल इतना ही पता चला कि उस संदिग्ध आदमी का नाम प्रकाशक था ।
-अख़तर अली
अचानक एक दिन लेखनपुर में एक अजनबी आदमी आया। उसकी बुरी नज़र कविता और कहानी की जोड़ी पर पड़ी और उसी दिन से कविता और कहानी के बुरे दिन शुरू हो गये। वह अजनबी आदमी धीरे-धीरे संदिग्ध होने लगा, उसने कविता और कहानी को सब्ज़-बाग दिखाने शुरू कर दिये, उसने इनके दिमाग में यह बात बैठा दी कि यहाँ लेखनपुर मे तुम्हारी कोई पहचान नहीं बन पा रही है तुम मेरे साथ चलो फिर देखो मैं तुम्हें कहाँ से कहाँ पहुँचा देता हूँ । कविता और कहानी उस धोखेबाज के चक्कर में आ गये और अपने आप को पूरी तरह से उसके हवाले कर दिया। उस दिन के बाद से आज तक लेखनपुर में कविता और कहानी को नहीं देखा गया। किसी को पता ही नहीं चला कि आखिर ये दोनों का क्या हुआ? बहुत समय बाद केवल इतना ही पता चला कि उस संदिग्ध आदमी का नाम प्रकाशक था ।
-अख़तर अली
बढ़िया :)
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