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जब कुछ नहीं रहेगा
क्या रहेगा?
मैं पूछता हूँ बार-बार
भरकर मन में चिंता अपार
कोई नहीं सुनता...
मैं पूछता हूँ बार-बार।
लोग हँसते हैं
शायद सुनकर,
शायद मेरी बेचैनी पर
उनकी हँसी में मेरा डर है-
जब कुछ नहीं रहेगा
क्या रहेगा?
नहीं रहेगा सुख
दुःख भी नहीं
नहीं रहेगी आत्मा,
जब नहीं रहेगा कुछ
नहीं रहेगा भय।
कोई नहीं कहता रोककर मुझे
मेरा भय अकारण है
कि नष्ट होकर भी रह जायेगा कुछ
मैं बार-बार लौटता हूँ
कविता के अभयारण्य में
जैसे मेरी जड़ें वहाँ हैं।
मित्रों, मैं कविता नहीं करता
मैं खुद से लड़ता हूँ
- जब नहीं रहेगा कुछ
क्या रहेगा?
-राकेश रोहित
सुन्दर ।
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