उलझन..............शैल अग्रवाल
समय की आँच पर
चढ़ा मन का पतीला
कालिख से लिपा-पुता
उबलता-उफनता
खुरच डाली हैं मैंने
वे जली-भुनी तहें
पोंछा है इसे अपने
हाथों से रगड़-रगड़
पर कैसे परोसूँ
प्यार की रसोई
शब्दों की मिठाई
नेह का जल...
वह जली महक
तो जाती नहीं
तन-से-मन-से।
-शैल अग्रवाल
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10.9.2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2522 में दिया जाएगा
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteATI SUNDAR KAVITA HAI
ReplyDeleteGET LATEST JOKES AND SMS IN YOUR INBOX
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