Wednesday, November 9, 2016

उलझन..............शैल अग्रवाल


समय की आँच पर
चढ़ा मन का पतीला
कालिख से लिपा-पुता
उबलता-उफनता

खुरच डाली हैं मैंने
वे जली-भुनी तहें
पोंछा है इसे अपने
हाथों से रगड़-रगड़

पर कैसे परोसूँ
प्यार की रसोई
शब्दों की मिठाई
नेह का जल...

वह जली महक
तो जाती नहीं
तन-से-मन-से।

-शैल अग्रवाल 

3 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10.9.2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2522 में दिया जाएगा

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