बढ़ रही जूँ जूँ मिरी ये नातवानी और है
हो रही महसूस मुझको अब गिरानी और है
ग़म्ज़ा-ओ-इश्वो अदा की तर्जुमानी और है
कह रही है कुछ ज़बाँ लेकिन कहानी और है
है ज़ईफ़ी इस्मे सानी इंतिज़ारे मौत का
ज़िंदगी उतनी है बस जितनी जवानी और है
मर न जाएँ मौत से पहले अगर मालूम हो
क़ैद हस्ती की अभी कितनी बितानी और है
चारागर कहता है मेरे जिस्म में है ख़ून कम
देखना, मीना में क्या कुछ अर्ग़वानी और है ?
गुफ़्त तो उस हुस्नख़ू की तल्ख़ भी है चाशनी
पर मलाहत हासिले शीरीं बयानी और है
टूट जाएगा मिरा दिल गर अधूरी रह गयी
बस ज़रा सी दास्ताँ मुझ को सुनानी और है
आप के तर्ज़े तकल्लुम से तो लगता है यही
रह गयी बाक़ी अभी कुछ सरगिरानी और है
हिज्र की शब हार मुझ से खा चुकी है, ऐ फ़लक,
भेज, गर कोई बलाए आस्मानी और है
ज़ख़्म जो तूने दिए हैं आरिज़ी वो कुछ नहीं
नक़्श जो दिल पर हुई है वो निशानी और है
आज ये रुत्बा मिला है, कल मिलेगा दूसरा
आस्माँ तक पाएदाने कामरानी और है
आख़िरी दम तक बलाएँ पेश आती हैं नयी
भूल जाओ ‘एक मर्गे नागहानी और है’
“शाज़” जब उस की गली से आबरू जाती रही
जाए जो जाता है, अब क्या चीज़ जानी और है ?
“शाज़” जहानी
(आलोक कुमार श्रीवास्तव )
मोबाइल 09350027775
सुन्दर ।
ReplyDeleteटूट जाएगा मिरा दिल गर अधूरी रह गयी
ReplyDeleteबस ज़रा सी दास्ताँ मुझ को सुनानी और है
लाजवाब ग़ज़ल है, अच्छा चयन है आपका ।
कुछ शब्दों के अर्थ जानने के लिए शब्दकोश का सहारा लेना पड़ा ।
Bahut umda
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