पापा आपकी यादों से
आज फ़िर मैंने
अपनी पीठ टिकाई है
पलकों पे नमी है ना
मन भावुक हो रहा है
हर बरस की तरह
आज फ़िर ...
ये तिथि जब भी आती है
बिना कुछ कहे
मन चिंहुक कर
बाते करने लगता है आपकी
कुछ उदासियां
ठहरी हैं मन के पास ही
कुछ ख़्याल बैठे हैं
गुमसुम से !
.....
कितना कुछ बदला
पर ये मन आज भी
आपके कांधे पे
सिर टिकाये हुए है
आप यूं हीं रहेंगे
साथ मेरे जानती हूँ
आपका चेहरा बार -बार
सामने आ रहा है
नहीं संभाल पाती जब
तो उठाकर क़लम
शब्दों के श्रद्धासुमन
अर्पित कर देती हूँ
जहाँ भी हों आप यूं ही
अपना आशीष देते रहना !!!
- सीमा सदा सिंघल
.
ReplyDeleteअब न मिलेगी पप्पी उनकी
पर स्पर्श , तो बाकी होगा !
अब न मिलेगी आहट उनकी
पर अहसास तो बाकी होगा !
कितने ताकतवर लगते थे,वे कठिनाई के मौकों पर !
जब जब याद करेंगे उनको , हँसते हुए खड़े पाएंगे !
अपने कष्ट नही कह पाये
जब जब वे बीमार पड़े थे
हाथ नहीं फैलाया आगे
स्वाभिमान के धनी बड़े थे
पाई पाई बचा के कैसे, घर की दीवारें बनवाई !
जब देखेंगे खाली कुर्सी, पापा याद बड़े आयेंगे !
शुभ प्रभात सतीष भाई ...
Deleteसादर आभिवादन..
आभार..
बहुत सुन्दर भाव ।
ReplyDeleteAabhar aap sbhi ka .....
ReplyDeleteSadar
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 25 - 08 - 2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2445 {आंतकवाद कट्टरता का मुरब्बा है } में दिया जाएगा |
ReplyDeleteधन्यवाद