ज़िन्दगी का हिसाब करने में
हो गए ख़ाली क़िस्त भरने में
सतह पर तैरता हूँ बेहरकत
नब्ज़ डूबी मिरी उबरने में
उस ने आवाज़ तो लगायी थी
मैंने ही देर की ठहरने में
खारे आंसू मिला रहा हूँ मैं
तेरी यादों के मीठे झरने में
मैंने सब रंग ख़र्च कर डाले
तेरी ख़ाली जगह को भरने में
तेरा भी नाम खो दिया जानां
मेरी आवाज़ ने बिखरने में
उसने पूछा के आप स्वप्निल हैं?
कितना अच्छा लगा मुकरने में
सीढियां सारी तोड़ डाली हैं
तुमने अंदर मिरे उतरने में
कुछ तो ‘आतिश’ में आंच बाक़ी है
वक़्त लगता है यार मरने में
स्वप्निल तिवारी ‘आतिश’
08879464730
खारे आंसू मिला रहा हूँ मैं
ReplyDeleteतेरी यादों के मीठे झरने में
बहुत खूब..........