पूछ रहा था पता
भटक रहा था
मेंढक कुएं की
तलाश में
यहां से वहां
नदी, तालाबों में
सुरक्षित नहीं था
वह कुआं जो आज
किंवदंती वन
गुम हो गया
दे दी अपनी
जगह नलकूपों को
कुआं जहां पहले
राहगीरों की प्यास
के लिये राह में
खड़े रहते थे,
इन्तजार में
किसी प्यासे के लिये
आज उसी कुएं की
तलाश में भटक रहा है
मेंढ़क
बड़े फख्र से कहलाने के
लिए
कुएं का मेंढ़क
-ललिता परमार
....पत्रिका से