नहीं दिखता तुम्हारी आँखों में
अब वो शहदीया राज
नहीं खिलता देखकर तुम्हें
मेरे मन का अमलतास,
नहीं गुदगुदाते तुम्हारी
सुरीली आँखों के कचनार
नहीं झरता मुझ पर अब
तुम्हारे नेह का हरसिंगार,
सेमल के कोमल फूलों से
नहीं करती माटी श्रृंगार
बहुत दिनों से उदास खड़ा है
आँगन का चंपा सदाबहार,
रिमझिम-रिमझिम बूँदों से
मन में नहीं उठती सौंधी बयार
रुनझुन-रुनझुन बरखा से
नहीं होता है सावन खुशगवार,
बीते दिन की कच्ची यादें
चुभती है बन कर शूल
मत आना साथी लौटकर
अब गई हूँ तुमको भूल।
-फाल्गुनी
श्रावण मास पर स्मृतिओं की सुन्दर बयार
ReplyDeleteबुलाने का खूशूरत बहाना और सुन्दर आमंत्रण
अमलतास और चंपा की महक बिखेरती पंक्तियाँ। वाह
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति...ईद मुबारक़...
ReplyDeleteखुबसूरत अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवारीय चर्चा मंच पर ।।
ReplyDeleteसाया बापू का उठा, *रूप-चन्द ग़मगीन :चर्चा मंच 1690
बहुत बढ़िया प्रस्तुति
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ReplyDeleteबेहतरीन ...
बहुत सुंदर--मन को छू गयी.
ReplyDeleteबीते दिन की कच्ची यादेंे
चुभती हैम बन कर शूल
मत आना---
अब गयी हूं तुमको भूल----इसके आगे कुछ पंकितियां लिख दीं है--मन के-मनके पर