उमड़ते आते हैं शाम के साये
दम-ब-दम बढ़ रही है तारीकी
एक दुनिया उदास है लेकिन
कुछ से कुछ सोचकर दिले-वहशी
मुस्कराने लगा है- जाने क्यों ?
वो चला कारवाँ सितारों का
झूमता नाचता सूए-मंज़िल
वो उफ़क़ की जबीं दमक उट्ठी
वो फ़ज़ा मुस्कराई, लेकिन दिल
डूबता जा रहा है - जाने क्यों ?
-इब्ने इंशा
उफ़क़=क्षितिज; जबीं=मस्तक
इब्ने इंशा
जन्म: 15 जून,1927, फ़िल्लौर, जिला जालंधर, पंजाब
निधन: 11 जनवरी,1978, लन्दन, यू के
कुछ प्रमुख कृतिः
निधन: 11 जनवरी,1978, लन्दन, यू के
कुछ प्रमुख कृतिः
इस बस्ती के एक कूचे में, चाँद नगर, दुनिया गोल है,
उर्दू की आख़िरी किताब
ये रचना सौजन्यः रसरंग, दैनिक भास्कर
ये रचना सौजन्यः रसरंग, दैनिक भास्कर
शुभप्रभात छोटी बहना
ReplyDeleteदही-हांडी की हार्दिक शुभकामनाए
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
सभी पाठकों को हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} परिवार की ओर से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
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सादर...!
ललित चाहार
waah...is post ke liye dhanyavad. Janmashtami ki hardik shubhkamnayein...
ReplyDeleteश्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें,सादर!!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteबेहतरीन मन के जज़्बात
ReplyDeleteअति सुंदर
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