जिसे अपना बनाए जा रहा हूँ,
उसी से चोट दिल पे खा रहा हूँ,
यकीं मुझपे करेगी या नहीं वो,
अभी मैं आजमाया जा रहा हूँ,
मुहब्बत में जखम तो लाजमी है,
दिवाने दिल को ये समझा रहा हूँ,
अकेला रात की बाँहों में छुपकर,
निगाहों की नमी छलका रहा हूँ,
जुदाई की घडी में आज कल मैं,
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ..
--अरुन शर्मा 'अनन्त'
ओपन बुक्स ऑनलाईन के
उसी से चोट दिल पे खा रहा हूँ,
यकीं मुझपे करेगी या नहीं वो,
अभी मैं आजमाया जा रहा हूँ,
मुहब्बत में जखम तो लाजमी है,
दिवाने दिल को ये समझा रहा हूँ,
अकेला रात की बाँहों में छुपकर,
निगाहों की नमी छलका रहा हूँ,
जुदाई की घडी में आज कल मैं,
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ..
--अरुन शर्मा 'अनन्त'
ओपन बुक्स ऑनलाईन के
लाइव तरही मुशायरा अंक - ३७ वें में प्रस्तुत "अरुन शर्मा 'अनन्त'" की ग़ज़ल
(बह्र: बहरे हज़ज़ मुसद्दस महजूफ)
(बह्र: बहरे हज़ज़ मुसद्दस महजूफ)
आदरणीया यशोदा दी आपने ग़ज़ल को मेरी धरोहर पर साझा करके जो मान दिया है, उसके लिए मेरे पास शब्द नहीं है कहूँ तो क्या कहूँ अनेक अनेक धन्यवाद आशीष एवं स्नेह यूँ ही बनाये रखिये.
ReplyDeletelast kuch lines bahut bahut acchi lagi...vaise puri gazal hi dil ko chune wali hai
ReplyDeleteबेहतरीन गज़ल !!
ReplyDeleteवाह,,,बहुत खूब बहुत सुंदर गजल ,,,अरुन जी,,,मजा आ गया,,
ReplyDeleteRECENT POST: तेरी याद आ गई ...
बहुत बढ़िया..
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति ....
ReplyDeleteवाह , बहुत खूब , उम्दा गजल लिखी अरुण भाई ने
ReplyDeleteअकेला रात की बाँहों में छुपकर,
ReplyDeleteनिगाहों की नमी छलका रहा हूँ,
जुदाई की घडी में आज कल मैं,
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ.--बहुत खूब, बहुत सुंदर गजल!
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sundar gazal...
ReplyDeleteप्रेम के दर्द को बहुत ही सरलता से व्यक्त किया है...
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन मनभावन रचना...
:-)