लुटा कर हमने पत्तों के ख़ज़ाने
हवाओं से सुने क़िस्से पुराने
हवाओं से सुने क़िस्से पुराने
खिलौने बर्फ़ के क्यूं बन गये हैं
तुम्हारी आंख में अश्कों के दाने
चलो अच्छा हुआ बादल तो बरसा
जलाया था बहुत उस बेवफ़ा ने
ये मेरी सोचती आँखे कि जिनमे
गुज़रते ही नहीं गुज़रे ज़माने
बिगड़ना एक पल में उसकी आदत
लगीं सदियां हमें जिसको मनाने
हवा के साथ निकलूंगा सफ़र को
जो दी मुहलत मुझे मेरे ख़ुदा ने
सरे-मिज़गा वो देखो जल उठे हैं
दिये जितने बुझाये थे हवा ने
- वज़ीर आग़ा
वजीर आगा के बारे में बल्देव मिर्जा ने ठीक ही कहा है..
" वजीर आगा के लिए कविता शब्दों की पहुँच से परे ले जाने वाली एक आध्यात्मिक यात्रा है..
वे कुआँरी और विरली पगडंडियों पर चलते हुए बीथोवन की तरह प्रकृती की आत्मा को जगाते है"
सौजन्यः अशोक खाचर
http://ashokkhachar56.blogspot.in/2013/06/waziraghakigazale.html
http://ashokkhachar56.blogspot.in/2013/06/waziraghakigazale.html
do. वजीर आगा के बारे में बल्देव मिर्जा ने ठीक हि अह है..
ReplyDelete" वजीर आगा के लिए कविता श्ब्दों की पहोच से परे ले जाने वाली एक आध्यात्मिक यात्रा है..वे कुआरी और विरली पगडंडियों पर चलते हुए बीथोवन की तरह प्रक्रुती की आत्मा को जगाते है"
- बलदेव मिर्जा
बहुत सुंदर गजले , बहुत आभार,
ReplyDeleteअच्छी रचना हम तक पहुंचाने के लिए आभार यशोदा जी
ReplyDeleteचलो अच्छा हुआ बादल तो बरसा
ReplyDeleteजलाया था बहुत उस बेवफ़ा ने ..
जबरदस्त ... कहाल की गज़ल है ... हर शेर लाजवाब ..
यशोदा जी धन्यवाद ,बहुत बढ़िया रचना
ReplyDeletelatest post मेरी माँ ने कहा !
latest post झुमझुम कर तू बरस जा बादल।।(बाल कविता )