दो और दो का जोड़ हंमेशा चार कहां होता है
सोच समझवालों को थोड़ी नादानी दे मौला
फिर रोशन कर ज़हर का प्याला चमका नई सलीबें
झूठों की दुनिया में सच को ताबानी दे मौला
फिर मूरत से बाहर आकर चारो ओर बिखर जा
फिर मंदिर को कोई मीरा दीवानी दे मौला
तेरे होते कोई किसी की जान का दुश्मन क्यों हैं
जीने वालों को मरने की आसानी दे मौला
......निदा फ़ाज़ली
श्री अशोक खाचर द्वारा प्रस्तुत
सोच समझवालों को थोड़ी नादानी दे मौला
फिर रोशन कर ज़हर का प्याला चमका नई सलीबें
झूठों की दुनिया में सच को ताबानी दे मौला
फिर मूरत से बाहर आकर चारो ओर बिखर जा
फिर मंदिर को कोई मीरा दीवानी दे मौला
तेरे होते कोई किसी की जान का दुश्मन क्यों हैं
जीने वालों को मरने की आसानी दे मौला
श्री अशोक खाचर द्वारा प्रस्तुत
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति,,,गजल साझा करने के लिए आभार,,,
ReplyDeleteRECENT POST : ऐसी गजल गाता नही,
thank you
ReplyDeleteबहुत बढिया ग़ज़ल......
ReplyDeleteनिदा साहब को पढ़ना वाकई सुखद अहसास है।
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