वो आ जाए ख़ुदा से की दुआ अक्सर
वो आया तो परेशाँ भी रहा अक्सर
ये तनहाई ,ये मायूसी , ये बेचैनी
चलेगा कब तलक ये सिलसिला अक्सर
न इसका रास्ता कोई ,न मंजिल है
‘मोहब्बत है यही’ सबने कहा अक्सर
चलो इतना ही काफ़ी है कि वो हमसे
मिला कुछ पल मगर मिलता रहा अक्सर
वो ख़ामोशी वही दुख है वही मैं हूँ
तेरे बारे में ही सोचा किया अक्सर
ये मुमकिन है कि पत्थर में ख़ुदा मिल जाए
मिलेगी बेवफ़ा से पर ज़फ़ा अक्सर
--सतपाल ख्याल
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ReplyDeleteबेहतरीन गज़ल !
ReplyDeleteचलो इतना ही काफ़ी है कि वो हमसे
मिला कुछ पल मगर मिलता रहा अक्सर
यूँ ही मिलते रहिए...फ़ासले मिट जाएँगे।
बेहतरीन ग़ज़ल .... सादर बधाई
ReplyDeleteआपकी सर्वोत्तम रचना को हमने गुरुवार, ६ जून, २०१३ की हलचल - अनमोल वचन पर लिंक कर स्थान दिया है | आप भी आमंत्रित हैं | पधारें और वीरवार की हलचल का आनंद उठायें | हमारी हलचल की गरिमा बढ़ाएं | आभार
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ..
ReplyDeleteचलो इतना ही काफ़ी है कि वो हमसे
मिला कुछ पल मगर मिलता रहा अक्सर
बहुत बढिया..
चलो इतना ही काफ़ी है कि वो हमसे
ReplyDeleteमिला कुछ पल मगर मिलता रहा अक्सर
...बहुत ख़ूबसूरत रचना...
बेहतरीन ग़ज़ल ...बहुत सुन्दर
ReplyDeleteवाह बहुत बढिया
ReplyDeleteवाह वाह !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर बेहतरीन ग़ज़ल
हार्दिक शुभकामनायें
मर्मस्पर्शी भाव सुन्दर शब्दों के साथ..अतिसुंदर
ReplyDeleteसुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति .
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