कितना दर्द है मेरे जिगर में
गली-गली मैं जाऊं
आग से भागा, सागर में डूबा
फिर भी मैं मुस्काऊं।
मैं शरणार्थी हूं तेरे वतन में
सब मुझको हैं ठुकराते
बच्चे, घर सब लूट चुके हैं
मेरे दिल पे ठेस पहुंचाते।
जर्जर कर रही है वेदना मुझको
कैसे जख्म दिखाऊं तुझको
कैसे जख्म दिखाऊं?
इन रिसते घावों पर आकर
तू मरहम जरा लगा दे
मुझ पर करुणा करके अब तू
वापिस मुझे बुला ले।
- सुमन वर्मा
बहुत ही सुन्दर! अप्रतिम! निश्चित रूप से यह लेखन बधाई का पात्र है। साथ ही यशोदा बहन का आभार कि उन्होंने इतनी सुन्दर रचना यहां उपलब्ध करायी।
ReplyDeleteइन रिसते घावों पर आकर
ReplyDeleteतू मरहम जरा लगा दे..
वाह ....बेजोड़
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होली की हार्दिक शुभकामनाएं ..
भावमय करते शब्द ...
ReplyDeleteहोलिकोत्सव की अनंत शुभकामनाएं
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,होली की हार्दिक शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ...सादर!
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आपको रंगों के पावनपर्व होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!