आज जब हरे-हरे खेतों में
सरसरा उठी मेरी चुनरी
सरसों में लिपट गई
नटखट बावरी
तब उसे छुड़ाते हुए
याद आए तुम और तुम्हारा हाथ
जिसने निभाया था कभी मेरा साथ
याद आए तुम और तुम्हारा हाथ
जिसने निभाया था कभी मेरा साथ
यादों की कोमल रेशम डोर
उलझ गई बेतरह
आज सुलझाते हुए धानी चुनर
आज याद आए
तुम्हारे साथ बिताए
वो हसीन लम्हात
आज फिर देखा मैंने
किसी तितली के पँखों को
पँखों के रंगों को
रंगों से सजी आकृति को
आज फिर याद आए
तुम, तुम्हारी तुलिका, तुम्हारे रंग।
आज फिर बरसी
जमकर बदली
आज फिर याद आई
तुम्हारी देह संदली।
जिसे तुमने मेरे लिए
शाख से उतारा था हौले से
खुब याद आया
तुम्हारा दिल नरम-नरम
कच्चे केसरिया सावन में
खिलते हर्षाते खेत में
आज फिर याद आए तुम
तुमसे जुड़ी हर बात
घनघोर बरसात के साथ।
बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ
ReplyDeleteआभार मोनिका दीदी
Deleteसुन्दर प्रस्तुति -
ReplyDeleteआभार आदरेया ||
दिनेश भाई आभार
Deleteमौसम की आदत ही कुछ ऐसी है ... कभी भूल जाने को कहती हो ..तो कभी भूले-भटके आने को.....
ReplyDelete------------------
उम्दा रचना ...
हेलो राहुल
Deleteकहाँ रहते हैं आप
आभार
बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ स्मृति जी
ReplyDeleteआभार अदिति बहन
Deleteसुंदर पंक्तियाँ यादों की कोमल रेशम डोर
ReplyDeleteउलझ गई बेतरह
आज सुलझाते हुए धानी चुनर
आज याद आए
तुम्हारे साथ बिताए
वो हसीन लम्हात new post "pi ke matwala rahe"
मधु बहन शुक्रिया
Deleteवाह!......
ReplyDeleteयादों के कोमल रेशमी डोर
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तुम, तुम्हारी तूलिका , तुम्हारे रंग!
सबकुछ सुंदर!!!
बहुत खूब
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