हाँथो से फिसलती रेत से
पूछा मेंने इक बार-
'कौन हे तेरी सहेली?'
मुस्कुराकर रेत ने कहा,
'वही, जो संग तुम्हारे गाती है
उलझा कर तुम्हें गीतों में
धीरे से फिसल जाती है। '
'मुझमें उसमें फर्क है इतना,
मैं हकीकत, वो एक सपना।
मेरी फिसलन दिखती है,
महसूस भी हो जाती है।'
'...पर वो निगोड़ी देकर अहसास,
सफर के साथ
फिसलकर हाँथों से
न जाने कहाँ खो जाती है,
मत पूछ उसका नाम
वो जिन्दगी कहलाती है.'
-प्रकाश मंगल सोहनी
बहुत सुन्दर प्रस्तुती.
ReplyDeleteमोहब्बत नामा
मास्टर्स टेक टिप्स
इंडियन ब्लोगर्स वर्ल्ड
शुक्रिया आमिर भाई
Deleteप्रभावशाली रचना।
ReplyDeleteआभार
Deleteआपने मेरी पसंद को सराहा
bahut khoob,jindgi ko paribhasit karti nayab prastuti'...पर वो निगोड़ी देकर अहसास,
ReplyDeleteसफर के साथ
फिसलकर हाँथों से
न जाने कहँ खो जाती है,
मत पूछ उसका नाम
वो जिन्दगी कहलाती है.
मधु दी मेरे संग्रह पर आपका स्वागत है
Deleteकृपया ब्लाग फालो करें ताकि नये पोस्ट की जानकारी आपके मिलती रहे
सादर
यशोदा जी आपने मेरे ब्लॉग पर जो प्रश्न किया था, उस विषय में मेरे ब्लॉग पर 2 पोस्टें पहले से ही हैं:
ReplyDeleteपोस्ट चोरी रोकने के लिए ये लेख पढ़ें:
1. पोस्ट कॉपी (चोरी) करने वालों से बचने का उपाय
2. आज ही अपनाइए 'ब्लॉग पोस्ट सुरक्षा कवच'
इनमें से किसी एक या दोनों का इस्तेमाल कर सकती हैं
उलझा कर तुम्हें गीतों में
ReplyDeleteधीरे से फिसल जाती है।
बहुत खूबसूरत रचना
शुक्रिया
Deleteआपने मेरी पसंद को सराहा
बहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteबहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको
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