मैं भींगती आँखों से उसे कैसे हटाऊँ
मुश्किल है बहुत अब्र में दीवार उठानी
अब्र = घटा,
निकला था तुझे ढूंढने इक हिज्र का तारा
फिर उसके तआक़ुब में गई सारी जवानी
हिज़्र = जुदाई, तआक़ुब = पीछा,
कहने को नई बात कोई हो तो सुनाएं
सौ बार ज़माने ने सुनी है ये कहानी
किस तरह मुझे होता गुमां तर्के-वफ़ा का
आवाज़ में ठहराव था, लहजे में रवानी
गुमां = अंदाजा
अब मैं उसे कातिल कहूं 'अमजद' कि मसीहा
क्या जख्मे-हुनर छोड़ गया अपनी निशानी
---अमजद इस्लाम 'अमजद'
मुश्किल है बहुत अब्र में दीवार उठानी
अब्र = घटा,
निकला था तुझे ढूंढने इक हिज्र का तारा
फिर उसके तआक़ुब में गई सारी जवानी
हिज़्र = जुदाई, तआक़ुब = पीछा,
कहने को नई बात कोई हो तो सुनाएं
सौ बार ज़माने ने सुनी है ये कहानी
किस तरह मुझे होता गुमां तर्के-वफ़ा का
आवाज़ में ठहराव था, लहजे में रवानी
गुमां = अंदाजा
अब मैं उसे कातिल कहूं 'अमजद' कि मसीहा
क्या जख्मे-हुनर छोड़ गया अपनी निशानी
---अमजद इस्लाम 'अमजद'
No comments:
Post a Comment