हरे कच्चे इस वन में खोया है पांखी
अनायास ही सोये मन में झांका है पांखी
नीले नीले प्रेमगीत के मुखड़े जैसा है
नभ का टुकड़ा है ये सुख की वर्षा है पांखी
जाने कौन दिशा से आया जाएगा किस ओर
मंद पवन की फुगड़ी है ये गरबा है पांखी
घर सारे वर्षा मे भीगे, देह धर्म भीगे
अपने पंखों के कौतुक में डूबा है पांखी
धूप में भीगा मन शब्दों के अर्थ - अनर्थ करे
भरे गले की देहरी में यूँ अटका है पांखी...
-------विजय वाते
प्रस्तुतिकरणः श्याम सुन्दर सारस्वत
अनायास ही सोये मन में झांका है पांखी
नीले नीले प्रेमगीत के मुखड़े जैसा है
नभ का टुकड़ा है ये सुख की वर्षा है पांखी
जाने कौन दिशा से आया जाएगा किस ओर
मंद पवन की फुगड़ी है ये गरबा है पांखी
घर सारे वर्षा मे भीगे, देह धर्म भीगे
अपने पंखों के कौतुक में डूबा है पांखी
धूप में भीगा मन शब्दों के अर्थ - अनर्थ करे
भरे गले की देहरी में यूँ अटका है पांखी...
-------विजय वाते
प्रस्तुतिकरणः श्याम सुन्दर सारस्वत
बहुत सुन्दर प्रस्तुति, बधाई.
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग meri kavitayen की नवीनतम पोस्ट पर भी पधारें, अपनी राय दें.
बहुत सुन्दर रचना !
ReplyDeleteआभार ! कृपया मेरे ब्लॉग की नवीनतम पोस्ट पर भी पधारें, अपनी राय दें.