जिन मुश्किलों में मुस्कुराना हो मना,
उन मुश्किलों में मुस्कुराना धर्म है।
जिस वक़्त जीना गैर मुमकिन सा लगे,
उस वक़्त जीना फर्ज है इंसान का,
लाजिम लहर के साथ है तब खेलना,
जब हो समुन्द्र पे नशा तूफ़ान का
जिस वायु का दीपक बुझना ध्येय हो
उस वायु में दीपक जलाना धर्म है।
हो नहीं मंजिल कहीं जिस राह की
उस राह चलना चाहिए इंसान को
जिस दर्द से सारी उम्र रोते कटे
वह दर्द पाना है जरूरी प्यार को
जिस चाह का हस्ती मिटाना नाम है
उस चाह पर हस्ती मिटाना धर्म है।
आदत पड़ी हो भूल जाने की जिसे
हर दम उसी का नाम हो हर सांस पर
उसकी खबर में ही सफ़र सारा कटे
जो हर नजर से हर तरह हो बेखबर
जिस आँख का आखें चुराना काम हो
उस आँख से आखें मिलाना धर्म है।
जब हाथ से टूटे न अपनी हथकड़ी
तब मांग लो ताकत स्वयम जंजीर से
जिस दम न थमती हो नयन सावन झड़ी
उस दम हंसी ले लो किसी तस्वीर से
जब गीत गाना गुनगुनाना जुर्म हो
तब गीत गाना गुनगुनाना धर्म है।
-गोपालदास "नीरज"
वाह
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (12-04-2019) को "फिर से चौकीदार" (चर्चा अंक-3303) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह !बहुत सुन्दर 👌
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteलाजवाब...