1927-2017
अबकी बार लौटा तो
बृहत्तर लौटूंगा
चेहरे पर लगाए नोकदार मूँछें नहीं
कमर में बांधें लोहे की पूँछे नहीं
जगह दूंगा साथ चल रहे लोगों को
तरेर कर न देखूंगा उन्हें
भूखी शेर-आँखों से
अबकी बार लौटा तो
मनुष्यतर लौटूंगा
घर से निकलते
सड़को पर चलते
बसों पर चढ़ते
ट्रेनें पकड़ते
जगह बेजगह कुचला पड़ा
पिद्दी-सा जानवर नहीं
अगर बचा रहा तो
कृतज्ञतर लौटूंगा
अबकी बार लौटा तो
हताहत नहीं
सबके हिताहित को सोचता
पूर्णतर लौटूंगा
- कुंवर नारायण सिंह
नमन।
ReplyDeletebahut badhiya....
ReplyDeleteबृहतर, मनुष्यतर,कृतज्ञतर वाह भावों की पराकाष्ठा।
ReplyDeleteसुंदर।
नमन है मेरा कलम के श्रेष्ठ सिपाही को ...
ReplyDeleteसबके हिताहित को सोचता पूर्णता लौटूंगा... बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत लाजवाब....
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