ख़ुश्क इन आंखों में सुर्खियां देखी है मैंनें
माज़ी की अपने तल्ख़ियां देखी है मैंनें।
अश्क लहू बनकर ग़मे दास्तां कह रहे
बेज़ुबां वक़्त की सख़्तियां देखी है मैंनें।
क्या चीज़ है अमीरे शहर हक़ीक़त तेरी
अहले दो आलम हस्तियां देखी है मैंनें।
रोशनी मयस्सर नहीं अब तलक अंधेरे को
तन्हा-तन्हा उदास बस्तियां देखी है मैंने।
-अमर मलंग