Monday, December 23, 2019

उफ़ ये जिंदगी....पारुल कनानी

डूबी सी है खुद के अन्दर
ढूँढती है फिर भी समंदर
जाने क्यों ये खाली जिंदगी
उफ़!ये साली जिंदगी !!
फिक्र में धुएँ का कश है
इतना ही तो इस पे बस है
एक घूँट सवाली जिंदगी
उफ़! ये साली जिंदगी !!
जाने कैसी है ये बोटी
रूखी-सूखी,खरी-खोटी
एक तमाशा तेरा मेरा
और तन्हाई से हासिल ताली जिंदगी
उफ़! ये साली जिंदगी !!
ख़्वाबों से रोज छनती है
खामखा मुझ में सनती है
मन के जैसी जाली जिंदगी
उफ़! ये साली जिंदगी !!
कुछ बुझी सी धूप भी है
कुछ जली सी छाँव भी
और कहीं पे पड़ गए हैं
सोच के कुछ पाँव भी
उबली उबली सी है अब भी
गरम चुस्की भरी ख्याली जिंदगी
उफ़!ये साली जिंदगी !!

लेखिका परिचय - पारुल कनानी 

4 comments:

  1. ख़्वाबों से रोज छनती है
    खामखा मुझ में सनती है
    मन के जैसी जाली जिंदगी
    उफ़! ये साली जिंदगी !
    बहुत खूब...
    वाह!!!

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  2. यह रचना जीवन के भीतर चलने वाले उलझे भावों, खालीपन, संघर्ष और आत्म–खोज की प्रक्रिया को बेहद ईमानदारी से सामने लाती है। यह दर्शाती है कि कभी-कभी जिंदगी धुएँ, सवालों और टूटे सपनों के बीच खुद को समझने की कोशिश बन जाती है।

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