Friday, December 20, 2019

आदमी अकेले जीना नही चाहता....रवीन्द्र भारद्वाज


आदमी अकेले आता है 
और अकेले जाता है 

लेकिन अकेले जीना नही चाहता 
ना जाने क्यों !

वह मकड़ी का जाल बुनता है रिश्तों का 
और खुद ही फँसता जाता है 

उस जाल से वह जितना निकलने की कोशिश करता है 
उतना ही उलझता जाता है 

लेखा परिचय - रवीन्द्र भारद्वाज

4 comments:

  1. बहुत सही कहा आपने

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  2. प्रश्न कठिन है नहीं सरल,
    नहीं किसी से होता हल

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  3. आपने सच में इंसान की हालत बहुत सरल तरीके से दिखाई है अपने लेख में। हम जानते हैं कि हम अकेले आते हैं और अकेले जाते हैं, फिर भी हम लोग किसी ना किसी सहारे को पकड़ने की कोशिश करते हैं। हम रिश्तों का जाल खुद बनाते हैं और फिर उसी में उलझ जाते हैं।

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