Tuesday, July 16, 2019

मरने के इन्तजार में एक दिन...अरुण चन्द्र रॉय

जिस दिन
मैं मर जाऊंगा
घर के सामने वाला पेड़
कट  जाएगा
उजड़ जाएंगे
कई जोड़े घोसले
उनपर नहीं चहचहाएंगी
गौरैया मैना
गिलहरियां भी
सुबह से शाम तक
अटखेलियां नहीं करेंगी
कोई नहीं रखेगा इन चिड़ियों के दाना और पानी
अपनी व्यस्तता से निकाल कर दो पल





पहली मंजिल की बैठकखाने की खिड़कियाँ

जहाँ अभी पहुँचती है पेड़ की शाखा
वहां सुबह से शाम तक रहा करेगा
उज्जड रौशनी
ऐसा कहते हैं घरवाले
मेरी पीठ के पीछे
इसी शाखा की वजह से
बैठकखाने में नहीं लग पा रहा है
वातानुकूलन यन्त्र
मेरी गोद  में उछल कर कहता है
मेरी सबसे छोटी पोती।





जैसे मेरे मरने के बाद नीचे नहीं आया करेगा

पीला कुत्ता
जिसे मैंने चुपके से गिरा दिया करता हूँ
अपने हिस्से की रोटी से एक कौर
मर जाएगा मेरे और कुत्ते के बीच एक अनाम सम्बन्ध
झूठ कहते हैं कि  कोई मरता है अकेला
जबकि जब भी कोई मरता है
उसके साथ मरती हैं  कई और छोटी छोटी चीज़ें



मरने का इन्तजार

पूरे जीवन के वर्षों से कहीं अधिक दीर्घ होता है !



5 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर
    सादर

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  2. मृत्यु के बाद जो होने वाला है उसको टालने का एक उपाय सुझाती है आपकी कविता, यदि अपनी वसीयत में कोई वह सब लिख दे जो भी वह चाहता है..शायद कोई कद्र करे मरने वाले की आखिरी इच्छा की..

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