Monday, May 6, 2019

बिखरकर टूटने का डर ....सुरेश अग्रवाल "अधीर"


कहूँ किसको बता यारा सुकूँ दिल को न आता है
करूँ मैं कोशिशें कितनी नहीं ये दिल भुलाता है

हज़ारों राह ढूँढी पर भुलाना है बहुत मुश्किल
बिना सोचे तुझे हमदम नहीं दिल चैन पाता है
जहां के वास्ते मुझको बहुत कुछ सोचना है अब
मगर दिल तो हमेशा ही तुम्हारी राह जाता है

नहीं इसको समझ आये बना अंजान है फिरता 
बहुत बेदर्द दिल मेरा मुझे हरदम रुलाता है

नज़ारे तो दिखाता हूँ मगर चुपचाप है बैठा
नहीं ये ख़्वाब कोई भी निग़ाहों में सजाता है

डगर तो ढूँढ ली मैंने मगर बेबस बहुत है दिल 
तेरे कूचे से बाहर की नहीं अब राह पाता है

हुआ पागल मेरा दिल तो नहीं है फ़िक्र कुछ इसको
बिखरकर टूटने का डर मगर मुझको सताता है
-सुरेश अग्रवाल "अधीर"

8 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (08-05-2019) को "पत्थर के रसगुल्ले" (चर्चा अंक-3328) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (07-05-2019) को "पत्थर के रसगुल्ले" (चर्चा अंक-3328) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. बहुत ही सुन्दर रचना

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  4. बहुत सुंदर ,लाजबाब ,सादर नमस्कार

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  5. बहुत सुन्दर
    सादर

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  6. वाह!!!
    बहुत ही लाजवाब...

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