Sunday, May 13, 2018

माँ है अनुपम....डॉ. कनिका वर्मा

माँ है अनुपम
माँ है अद्भुत

माँ ने नीर बन
मेरी जड़ों को सींचा
और उसी पानी से
मेरे कुकर्म धोए

माँ ने वायु बन
मेरे सपनों को उड़ान दी
और उसी हवा से
मेरे दोषों को उड़ा दिया

माँ ने अग्नि बन
मेरी अभिलाषाओं को ज्वलित किया
और उसी अनल में
मेरी वासनाओं को दहन किया

माँ ने वसुधा बन
मेरी आकांक्षाओं का पालन किया
और उसी भूमि में
मेरे अपराधों को दबा दिया

माँ ने व्योम बन
मेरी आत्मा को ऊर्जित किया
और उसी अनन्त में 
मुझे बोझमुक्त किया

माँ है अनुपम
माँ है अद्भुत
-डॉ. कनिका वर्मा

6 comments:

  1. वाह!!बहुत सुंदर ।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (14-05-2017) को "माँ है अनुपम" (चर्चा अंक-2970) ) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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  3. माँ पर की रचना बहुत ही लाजवाब है।

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