Tuesday, August 1, 2017

पेड़ सी होती है स्त्री.....निधि सक्सेना



पेड़ सी होती है स्त्री
भावों और अनुभावो की असंख्य पत्तियों से लदी
विभिन्न प्रकार की पत्तियाँ
उमंग की पंखाकार पत्तियाँ..
सपनों की छुईमुई सी पत्तियाँ ..
अकुलाहट की त्रिपर्णी पत्तियाँ ..
ईर्ष्या की दंतीय पत्तियाँ ..
कुंठा की कंटीली पत्तियाँ
क्षोभ और प्रतिशोध की भालाकार पत्तियाँ ..
प्रतीक्षा की कुंताभ पत्तियाँ ..
स्नेह की हृदयाकार पत्तियाँ ..
प्रेम की एकपर्णी पत्तियाँ ..
पतझड़ भी एक सतत् प्रक्रिया है
भाव झड़ते रहते हैं
पुनः पुनः अंकुरित होने को
बहुधा कोई भाव मन के किसी प्रच्छन्न कोने में ठहर जाता है 
फलित होकर पुष्प बनता है..
सृष्टि की हर कविता इसी पुष्प से उपजी सुगंध है..
~निधि सक्सेना


5 comments:

  1. अति सुंदर भाव से ओत प्रोत रचना।

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  2. बहुत सुन्दर.....
    पेड़ सी होती हैं स्त्री...वाह!!!

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (02-08-2017) को गये भगवान छुट्टी पर, कहाँ घंटा बजाते हो; चर्चामंच 2685 पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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