Saturday, April 8, 2017

ऐसा कुछ गुमान था.............प्रतिभा चौहान


अपनी हकीकत पर मुझे इत्मिनान था
क्योंकि मेरी नजरों में  आसमान था

खुली फिजा में होंगी राहत की बस्तियां
भटकती राहों को ऐसा  कुछ गुमान था

मंजिल यूं ही नहीं मिली इन नुमाइंदों  को
कई रतजगे, कई मशवरे ,कड़ा इम्तिहान था

उगा डाली सूखी दरारों में नमी की पत्तियाँ
पत्थरों में कहाँ  ऐसा  हौसला - ईमान था....
-प्रतिभा चौहान 

6 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (09-04-2017) को
    "लोगों का आहार" (चर्चा अंक-2616)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  2. वाह ! लाजवाब !! बहुत खूब

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  3. बहुत सुन्दर.....
    मंजिल यूं ही नही मिली इन नुमाइंदो को.....
    वाह !!

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