Tuesday, August 20, 2013

कहां से लाऊं वो झोंका जो मेरे पास नहीं.............वज़ीर आगा


 

सितम हवा का अगर तेरे तन को रास नहीं
कहां से लाऊं वो झोंका जो मेरे पास नहीं

पिघल चुका हूँ तमाज़त में आफताब की मैं
मेरा वज़ूद भी अब मेरे आस-पास नहीं

मेरे नसीब में कब थी बरहनगी अपनी
मिली वो मुझको तम्मना की बे-लिबास नहीं

किधर से उतरे कहां आ के तुझसे मिल जाएं
अभी नदी के चलन से तू रू-शनास नहीं

खुला पड़ा है समंदर किताब की सूरत
वही पढ़े इसे आकर जो ना-शनास नहीं

लहू के साथ गई तन-बदन की सब चहकार
चुभन सबा में नहीं कली में बास नहीं

-वज़ीर आगा
जन्मः18 मई, 1922, सरगोधा, पाकिस्तान
मृत्युः जन्मः07 सितम्बर, 2010, लाहोर पाकिस्तान


तमाज़तःगर्मी
बरहनगीः नग्नता
शनासः वाकिफ़

6 comments:

  1. बहुत सुन्दर..रक्षाबंधन की शुभकामनाएं

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  2. बहुत सुन्दर,रक्षा बंधन की हार्दिक बधाइयाँ.

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  3. बहुत सुन्दर,रक्षा बंधन की हार्दिक बधाइयाँ.

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल { बुधवार}{21/08/2013} को
    चाहत ही चाहत हो चारों ओर हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः3 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra

    hindiblogsamuh.blogspot.com


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  4. यशोदा जी , इतनी सुन्दर ग़ज़ल के लिए ढेरो बधाईयाँ .. मैंने दो बार पढ ली ..

    दिल से बधाई स्वीकार करे.

    विजय कुमार
    मेरे कहानी का ब्लॉग है : storiesbyvijay.blogspot.com

    मेरी कविताओ का ब्लॉग है : poemsofvijay.blogspot.com

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  5. बेहतरीन अंदाज़..... सुन्दर
    अभिव्यक्ति..

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