Monday, July 16, 2018

पथ न भूले एक पग भी ....महादेवी वर्मा

सिंधु का उच्छवास घन है 
तड़ित तम का विकल मन है 
भीति क्या नभ है व्यथा का 
आँसुओं में सिक्त अंचल 

स्वर अकम्पित कर दिशाएँ 
मोड़ सब भू की शिराएँ 
गा रहे आँधी प्रलय 
तेरे लिए ही आज मंगल 

मोह क्या निशि के चरों का 
शलभ के झुलसे परों का 
साथ अक्षय ज्वाल सा 
तू ले चला अनमोल संबल 

पथ न भूले एक पग भी 
घर न खोए लघु विहग भी 
स्निग्ध लौ की तूलिका से 
आंक सब की छांह उज्ज्वल 

हो लिए सब साथ अपने 
मृदुल आहटहीन सपने 
तू इन्हें पाथेय बिन चिर 
प्यास के मधु में न खो चल 

धूप में अब बोलना क्या 
क्षार में अब तोलना क्या 
प्रात: हँस रो कर गिनेगा 
स्वर्ण कितने हो चुके पल 
दीप मेरे जल अकंपित घुल अचंचल 
-महादेवी वर्मा

परिचय: महादेवी वर्मा: 
आधुनिक युग की मीरा 
हिन्दी के साहित्याकाश में छायावादी युग के प्रणेता 'प्रसाद-पन्त-निराला' की अद्वितीय त्रयी के साथ-साथ अपनी कालजयी रचनाओं की अमिट छाप छोड़ती हुई अमर ज्योति-तारिका के समान दूर-दूर तक काव्य-बिम्बों की छटा बिखेरती यदि कोई महिला 
जन्मजात प्रतिभा है तो वह है 'महादेवी वर्मा'

4 comments:

  1. सिंधु का उच्छवास घन है
    तड़ित तम का विकल मन है
    भीति क्या नभ है व्यथा का
    आँसुओं में सिक्त अंचल
    सुंदर रचना महादेवी वर्मा जी की बहुत बहुत आभार यशोदा जी

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (17-07-2018) को "हरेला उत्तराखण्ड का प्रमुख त्यौहार" (चर्चा अंक-3035) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 18 जुलाई 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. अद्भुत रचनाओं का एक वृहत संकलन ही थी,महादेवी जी,सदा से प्रेरणादायी,आभार यशोदाजी इतनी अच्छी पंक्तियों से रूबरू कराने को...

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