Tuesday, January 30, 2018

अनुभूतियों के कच्चे फूल....स्मृति आदित्य


कच हरी दूब सा 
कोमल रिश्ता 
दंड भुगतता है 
नरम होने का 
और 
रौंदा जाता है जब-तब 
चाहे-अनचाहे... 
वक्त के पैरों तले।
मुझसे तुम्हारा रिश्ता
कच हरी दूब सा...
रौंद दोगे तो चलेगा 
पर सूखने मत देना 
नफरत की 
चिलचिलाती धूप में,
मन के सूरज को 
कभी इतना मत तपने देना कि 
झुलस जाए 
अनुभूतियों के कच्चे फूल...
कच हरी दूब सा 
रिश्ता हमारा 
क्या रहेगा सदा हरा...


-स्मृति आदित्य

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (31-01-2018) को "रचना ऐसा गीत" (चर्चा अंक-2865) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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